कल्किपुराण (Kalki Puran) – भगवान् कल्कि कलयुग का अंत किस प्रकार करेंगे ?

Teerthank
6 Min Read

जो भुजदण्डरूप कराल सर्प के ग्रास की विषाक्त ज्वाला से जलते हुए शरीरवाले एवं पृथ्वी को क्षुब्ध करनेवाले भूपालों का [भविष्य में] अपनी उत्तम तलवार से संहार करेंगे, घोड़ा ही जिनका सनातन वाहन है, जो सत्ययुग के आदिकर्ता हैं, धर्म की प्रवृत्ति जिन्हें प्रिय है और जो ब्राह्मण-वंश में अवतीर्ण होंगे,

ऐसे कल्कि नाम से विख्यात परात्मा भगवान् श्रीहरि जगत की रक्षा करें। सम्भल क्षेत्र के सम्बन्ध में एक पौराणिक आख्यान मिलता है। वह आख्यान इस प्रकार है – नैमिषारण्य में शौनकादि महर्षियों ने बारह वर्ष में समाप्त होनेवाले यज्ञ का आरम्भ किया था। वहाँ श्रीसूतजी के पधारने पर महर्षियों ने उनसे यह प्रश्न किया कि –

राजा परीक्षित का निर्वाण हो जाने पर कलियुग का अन्त किस प्रकार हुआ ?

श्रीसूतजी ने उत्तर दिया कि श्रीशुकदेवजी राजा परीक्षित्को कथा सुनाकर उनकी पूजा स्वीकारकर भिक्षुओंके साथ महर्षि मार्कण्डेयके आश्रम में आये और वहीं उन्होंने ऋषियों के इस प्रश्न का समाधान किया था। श्रीशुकदेवजी से अनुमति लेकर मैंने भी कलियुग की आदि, मध्य, अन्तकथाओं को जैसे सुना था, वैसे ही आपको भी सुनाता हूँ –

 

 

प्रलयान्ते  जगत्स्रष्टा ब्रह्मा लोकपितामहः
ससर्ज घोरं मलिनं पृष्ठदेशात् स्वपातकम्।।
(कल्किपुराण १। १।१५)

प्रलयकाल के अन्त में जगत्की सृष्टि करनेवाले लोकपितामह ब्रह्मा ने अपनी पीठ से भयंकर मलिन पातक की सृष्टि की, वह अधर्म नाम से विख्यात हुआ। उस अधर्म का प्रचार आरम्भ होनेपर यज्ञ-दान-तप-स्वाध्याय, वर्णधर्म, आश्रम-धर्म लुप्त होने लगते हैं। धर्म का नामतक मिट जाता है। 

Shri Kalki Dham

तब सब देवता यज्ञयागादिका आहार न मिलने से दुखी होकर ब्रह्मा जी की शरण में जाते हैं। ब्रह्मा जी भी इन सब देवताओं को साथ लेकर गोलोक में पहुँचकर श्रीनारायण को भूमण्डल की दुर्दशा सुनाते हैं। विष्णु भगवान् भी यह बात सुनकर सम्भल में विष्णुयशा ब्राह्मण के यहाँ अपने अवतार का वचन देते हैं और अपनी सहायता के लिये देवताओं को भी आर्यावर्त में अवतीर्ण होने का निर्देश देते हैं।

लक्ष्मी जी सिंहलद्वीप में बृहद्रथ राजर्षि की धर्मपत्नी कौमुदी की कोख से जन्म लेती हैं। इनका नाम ‘पद्मा‘ होता है। पौराणिक वर्णन के अनुसार उस समय सूर्यवंश के राजा ‘मरु‘ और चन्द्रवंश के राजा ‘देवापि‘ कल्कि भगवान की आज्ञा के अनुसार वर्णाश्रम की मर्यादाओं को व्यवस्थित करते हैं।

भगवान कल्कि का अवतार कब होगा ?

वैशाखमास के शुक्लपक्ष की द्वादशी के दिन कन्या-लग्न में भगवान कल्कि का अवतार होता है। भगवान् चतुर्भुजरूप से माता-पिता को दर्शन देकर ब्रह्मा जी की प्रार्थना से द्विभुज रूप धारण करते हैं। इनके जन्म के समय नद, नदी, समुद्र, पर्वत आदि सभी स्थानों में शुभ शकुन हुए और चराचर विश्व में प्रसन्नता छा गयी। कल्कि भगवान् विशाखयूप राजा के साथ और अपने ज्येष्ठ भ्राताओं तथा बन्धु-बान्धवों के साथ धर्म की रक्षा के लिये विचार-विमर्श करने लगे।

कल्कि भगवान् का स्वयंवर

शिव के द्वारा भेजे गये वेदमय शुक के माध्यम से सिंहलद्वीप में पद्मावती के स्वयंवर का समाचार प्राप्तकर श्री कल्कि भगवान् उस स्वयंवर में पधारे। लक्ष्मीरूपिणी पद्मावती के प्रभाव से उस स्वयंवर में आये हुए राजाओं को स्त्रीभाव की प्राप्ति हो गयी। पद्मावती के साथ श्री कल्कि भगवान का विवाह-संस्कार सम्पन्न होने पर राजागण पुनः पुरुषभाव को प्राप्त हुए और भगवान की इस माया का चमत्कार जानने की प्रार्थना की।

अनन्त मुनि की कथा

तभी अनन्त नाम के मुनि ने प्रकट होकर अपने जन्म की कथा सुनाकर समझाया कि भगवान की माया में सब कुछ सम्भव है। स्त्री, पुरुष, नपुंसक, देश, काल, वस्तु – ये सब कल्पित पदार्थ हैं। भगवान की शरणागति ही जीवों के कल्याण का एकमात्र साधन है। यह सुनकर भगवद्भक्ति में विभोर होकर सभी राजा अपने अपने देश को चले गये।

भगवान् कल्कि को सम्भल में पुत्र प्राप्ति

इधर पद्मावती को साथ लेकर भगवान् कल्कि ने सम्भल में प्रवेश किया। विश्वकर्मा के द्वारा उस समय इन्द्र की अमरावती के समान सम्भल की शोभा हुई। कुछ समय के अनन्तर कल्कि भगवान्के यहाँ पद्मावती ने ‘जय-विजय’ नामक दो पुत्रों को जन्म दिया। कल्कि भगवान्के अन्य भ्राताओं के यहाँ भी दो-दो पुत्रों का जन्म हुआ।

फिर कुछ समय बाद कल्कि भगवान्के पिता विष्णुयशा के द्वारा अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न हुआ। सूर्यवंश के राजा मरु और चन्द्रवंश के राजा देवापि ने भी उसी समय उपस्थित होकर कल्किभगवान्की आज्ञा से धर्म विरोधियों का संहार किया और धर्म की स्थापना तथा सत्ययुग का प्रवर्तन किया।

इस कल्किपुराणीय कथानक में और भी अनेक कथा प्रसंग स्थित हैं, जिनमें परशुराम जी द्वारा निर्दिष्ट रुक्मिणी-व्रत की महिमा से कल्कि पत्नी रमा को पुत्र की प्राप्ति, ब्रह्मा आदि देवताओं का कल्किभगवान्के दर्शन के लिये सम्भल में उपस्थित होना, श्री गंगा जी की स्तुति करके ऋषियों का वहाँ आना, मरु और देवापि के हाथों में अपने पृथ्वी की रक्षा का भार सौंपकर कल्किभगवान्का अपने वैकुण्ठधाम के लिये प्रस्थान करना आदि विषयों के साथ कल्किपुराण के पाठ और श्रवण के माहात्म्य का वर्णन प्रमुख प्रसंग हैं।


श्री हरि की यह अवतार कथा परम मंगलकारिणी है। जैसा कि कल्किपुराण में कहा भी गया है –

अवतारं महाविष्णोः कल्के: परममद्भुतम्।
पठतां शृण्वतां भक्त्या सर्वाशुभविनाशनम्।
(कल्किपुराण ३ । २०।१६)

‘कल्कि महाविष्णु के परम अद्भुत अवतार की यह कथा भक्तिपूर्वक पढ़ने और सुननेवालों के सभी अमंगलों का नाश करनेवाली है।’

Share This Article
Leave a Comment