उत्तराखण्ड की यात्रा हरिद्वार से आरम्भ होती है। कुछ लोग इसे हरिद्वार और कुछ लोग हरद्वार कहते हैं। यहाँ से केदारनाथ और बदरीनाथ को मार्ग जाता है। बदरीनारायण हरि हैं, इसलिये इसका नाम हरिद्वार हुआ। केदारनाथ शंकर जी अर्थात् हर हैं, इसलिये इस स्थान का नाम हरद्वार हुआ।
दोनों का प्रवेशद्वार यही है। उत्तराखण्ड को स्वर्ग भी कहा जाता है, इसलिये हरिद्वार को ‘स्वर्गद्वार’ भी कहा जाता है। ऋषिकेश से पंचप्रयाग आने का सर्वसुलभ साधन प्राप्त होता है। यहाँ से सत्तर किलोमीटर आगे बढ़नेपर देवप्रयाग का पावन तीर्थ आ जाता है।
क्या है पंच प्रयाग की पौराणिक कथा
जब मां गंगा स्वर्ग से धरती पर आई तो उनके तेज प्रवाह को कम करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया। इसके बाद मां गंगा अपने प्रवाह को कम करते हुए उन्हें अलग-अलग हिमालयी क्षेत्र में बहीं। भगवान शिव की जटाओं से निकलने के बाद गंगा माँ अलग-अलग नदियों के रूप में जैसे भागीरथी, अलकनंदा, विष्णु गंगा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर और मंदाकिनी के नाम से जानी गयी।
जिन स्थान पर दो पवित्र नदियों का मिलन हुआ वह स्थान प्रयाग और संगम के नाम से जाना गया। उत्तराखंड में ऐसी पांच जगहें हैं जहां दो नदियों का मिलन होता है। इसी को पंच प्रयाग नाम दिया गया।
पंच प्रयाग कौन कौन से हैं ?
विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग ये पांच प्रयाग है,. ये सभी उत्तराखंड में स्थित हैं. इन प्रयागों में दो नदियों का संगम होता है. संस्कृत में प्रयाग शब्द का अर्थ है नदियों का संगम स्थल।

देवप्रयाग
यहाँपर अलकनन्दा और भागीरथी का पावन संगम है। यह स्थान बड़ा ही रमणीक और प्राकृतिक सुषमाओं से परिपूर्ण है। यहाँ कालीकमलीवाले की धर्मशाला है। यहीं से भागीरथी को गंगा जी के नाम से पुकारा जाता है। यहाँ से सीधा एक मार्ग वदरिकाश्रम को और दूसरा गंगोत्तरी-यमुनोत्तरी को चला जाता है। यहीं से तीसरा मार्ग टिहरी को भी चला जाता है।
स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में इस तीर्थ का विस्तार से वर्णन मिलता है। यहाँ पर देवशर्मा नामक ब्राह्मण ने सत्ययुग में कठोर तप किया था। सूखे पत्तों को खाकर उस ब्राह्मण ने एक हजार वर्षतक तप किया, वहीं पर भगवान् विष्णुने उसे दर्शन देकर मनोवांछित वर प्रदान किया था।
केदारखण्ड के अनुसार, त्रेता युग में रावण का वध करने के बाद कुछ वर्षों तक भगवान राम ब्रह्महत्या के दोष के निवारण के लिए सीता मैया और लक्ष्मण के साथ देवप्रयाग में अलकनंदा भागीरथी के संगम पर तपस्या करने आए थे। संगम के निकट ही प्राचीन रघुनाथ मंदिर भी स्थित है। यहाँ श्रद्धालुओं की अपार भीड़ रघुनाथजी के दर्शनकर जीवन को सार्थक करती है।
यह स्थान बड़ा मनमोहक और प्रिय है। वन, पर्वत और सीढ़ीदार खेत और भोले-भाले गाँव अन्तरमन को मुग्ध कर लेते हैं।

इस स्थानपर दर्शन-भ्रमण करने के पश्चात् सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करके हमने आगे की ओर प्रस्थान किया। वन, पर्वत की अप्रतिम सुषमा का अवलोकन करते हुए हम रुद्रप्रयाग की ओर प्रस्थानकर आगे बढ़ने लगे।
रुद्रप्रयाग
देवप्रयाग से चलकर हम मलेटा, कीर्तिनगर, श्रीनगर पार करते हुए रुद्रप्रयाग आ जाते हैं। रुद्रप्रयाग में अलकनन्दा और मन्दाकिनी का संगम है। पुराणों में इस तीर्थ का वर्णन विस्तार से आया है। यहीं पर ब्रह्मा जी की आज्ञा से देवर्षि नारद जी ने हजारों वर्षतक तप किया। यहाँ पर उन्हें भगवान् शंकर के दर्शन हुए। यहींपर भगवान् शंकर जी ने नारद जी को सांगोपांग गन्धर्वशास्त्र प्रदान किया।
यहीं भगवान् रुद्र ने नारद जी को ‘महती’ नाम की वीणा प्रदान की। संगम के निकट कुछ ऊपर भगवान् शंकर का रुद्रेश्वर नामक लिंग है। यहाँ जनमानस आकर दर्शन का पुण्यलाभ प्राप्त करते हैं। यहाँ केदारनाथ की ओर से मन्दाकिनी और बदरीनाथ की ओर से अलकनन्दा आकर इस तीर्थ की महत्ता का सम्वर्धन संगम के द्वारा करती हैं।
यहाँपर रुद्रनाथजीका मन्दिर है। भक्तगण वर्षभर यहाँ दर्शन करते और पुण्यलाभ प्राप्त करते हैं। प्राकृतिक दृश्य बड़ा ही मनोहर है। यहाँ तीन जनपद का त्रिकोणीय केन्द्रबिन्दु है। सर्पाकार सड़कें बड़ी मनोहर लगती है।

इस स्थानपर निष्ठापूर्वक तन्मय होकर हम लोग अपनी भक्ति-भावना को तृप्ति प्रदान करते हैं। शंकर जी का अर्चन-वन्दन करके अपने यात्रा-अभियान को आगे की तरफ अर्थात् कर्णप्रयाग की ओर मोड़ देते हैं।
कर्णप्रयाग
रुद्रप्रयाग से ३१ किलोमीटर की दूरी पारकर कर्णप्रयाग में हम आ जाते हैं। यहाँ पर अलकनन्दा और पिन्दार गंगा का संगम है। यहाँ भगवती उमा का अति प्राचीन मन्दिर है। संगम से पश्चिम की ओर शिलाखण्ड के रूप में दानवीर कर्ण की भव्य तपःस्थली है। यहाँ एक मन्दिर भी है। यहाँपर महादानी कर्ण ने भगवान् सूर्य की आराधना करके अभेद्य कवच-कुण्डलों को हस्तगत किया था। कर्ण की तपःस्थली होने के कारण ही इसका नाम कर्णप्रयाग पड़ा है।
यहाँ का प्राकृतिक दृश्य बड़ा ही सुहावना लगता है। यहाँ से छोटी-छोटी नहरें निकालकर खेती का काम किया जाता है। यहाँ नीमतला स्थानपर ऊनी वस्त्रों का अच्छा उद्योग चलता है। पहले यह चमोली जनपद था। अब उसका नाम बदलकर गोपेश्वर हो गया है। यहाँपर कुछ दूर पर हाथी पर्वत, कागभुसुण्ड पर्वत, मराली गाँव, चेयँ मेयँ गाँव, घाटगाँव, चिकोला गाँव आदि स्थान प्रकृतिकी गोद में अहर्निश अठखेलियाँ करते दिखायी पड़ते हैं।

नन्दप्रयाग
कर्णप्रयाग से मात्र २० किलोमीटर की दूरीपर नन्दप्रयाग आता है। यहाँ पर अलकनन्दा और नन्दाकिनी का संगम है। यह स्थान बदरीनारायण मार्ग पर स्थित है। यहाँ की पौराणिक कथा है कि यहाँ नन्द महाराज ने कठिन तप किया था। भगवान् नारायण ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान माँगने को कहा। नन्दजी ने नारायण को पुत्ररूप में प्राप्त करने को कहा। नारायण ने उन्हें वरदान दिया था।
यहाँपर नन्दा देवी का सुन्दर मन्दिर है। नन्दा का मन्दिर, नन्द की तपःस्थली और नन्दाकिनी के संगम के कारण इस स्थान का नाम नन्दप्रयाग पड़ा। संगमपर भगवान् शंकर जी का भव्य मन्दिर है। यहाँ पर लक्ष्मीनारायण और गोपाल जी का मन्दिर है। यहाँ चीड़ के बहुत ऊँचे-ऊँचे वृक्ष प्रचुर संख्या में भरे पड़े हैं। यहीं से कुछ दूर आगे पीपरकोटी, गरुड़ गंगा, टंगनी, हेलंग आदि स्थान हैं। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अपार है। कहींपर पर्वतों से दुग्ध धारवाले झरने भी सुन्दर दृश्य की रचना करते हैं।

यहाँ की अप्रतिम सुषमा का अवलोकन करते हुए आगे बढ़नेपर हम विष्णुप्रयाग के रास्ते पर आ जाते हैं। यहाँ पर्वतों पर अनेक फूल खिले हुए हैं। उनमें सिर उठाये जंगली गुलाब अत्यन्त सुशोभित हो रहा है।
विष्णुप्रयाग
जोशीमठ से मात्र १० किमी० दूर विष्णुप्रयाग स्थित हैं। यहाँपर धौरी गंगा और अलकनन्दा का पवित्र संगम है। स्कन्दपुराण में इस तीर्थ का वर्णन विस्तार से आया है। यहाँ दोनों पवित्र नदियों में पाँच-पाँच कुण्डों का वर्णन आया है। यहीं से बदरीनाथ धाम का सूक्ष्म प्रभाव दिखायी पड़ने लगता है। यहाँ दो पर्वत रक्षक रूपमें खड़े हैं जिन्हें जय और विजय के रूपमें जाना जाता है।
यहाँ जल-प्रवाह अत्यन्त द्रुतगामी है। यहाँ धारा में प्रवेश करके कोई स्नान नहीं कर सकता। यहाँ स्नान करने के लिये लोटा लेकर जाना पड़ता है। किनारे बैठकर जलधारा से जल लेकर स्नान करना पड़ेगा। पानी अत्यन्त शीतल होता है। विष्णुप्रयाग धार्मिक महत्व के साथ-साथ ट्रेकिंग और पैदल यात्रा के लिए भी जाना जाता है।

प्रश्न – विष्णुप्रयाग में किन दो नदियों का संगम है ?
उत्तर – विष्णुप्रयाग में अलकनंदा और धौलीगंगा का संगम होता है और आगे चलकर यह नदी अलकनंदा के नाम से जानी जाती है।
प्रश्न – नंदप्रयाग में किन दो नदियों का संगम है ?
उत्तर – नंदप्रयाग में अलकनंदा और नंदाकिनी का संगम होता है। यह कर्णप्रयाग जाने तक अलकनंदा के नाम से जानी जाती है।
प्रश्न – कर्णप्रयाग में किन दो नदियों का संगम है ?
उत्तर – कर्णप्रयाग में अलकनंदा और पिंडर का संगम होता है। यह रुद्रप्रयाग जाने तक अलकनंदा के नाम से जानी जाती है।
प्रश्न – रुद्रप्रयाग में किन दो नदियों का संगम है ?
उत्तर – रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी और अलकनंदा का संगम होता है। यह देवप्रयाग जाने तक अलकनंदा के नाम से जानी जाती है।
प्रश्न – देवप्रयाग में किन दो नदियों का संगम है ?
उत्तर – देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है। यहीं से भागीरथी को गंगा जी के नाम से पुकारा जाता है।
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